माँ हिन्दी के नवअँकुर जिनकी छाया में पलते हैं
हिन्दी के उन आराधक को चलो नमन हम करते हैं
आदि करें हम "आदिकाल" से अनुपम छटा बिखेरी है
चन्दरबरदाई, जगनिक की कविता-घटा घनेरी है
दलपति नरपति, मधुकर ने क्या अद्भुत दृश्य उकेरा है
यूँ मानो घनघोर निशा में कोई प्रखर सवेरा है
उन कवियों की चरणधूलि को हम माथे पर मलते हैं
हिन्दी के उन आराधक.......
रामलला की भक्ति निहित है "स्वर्णकाल" अलबेला है
सूरदास के दोहों में कान्हा का बचपन खेला है
साखी, सबद, रमैनी, हैं औ पद्ममावत अखरावट है
"रामचरितमानस" में जीवन के दर्शन की आहट है
इन कवियों के काव्यसिंधु से हम भी अँजुरि भरते हैं
हिन्दी के उन आराधक......
सब कालों का अलंकरण जो "रीतिकाल" कहलाता है
श्रृँगारिक सागर को धारे मन ही मन इतराता है
मीराबाई, घनानन्द, औ केशवदास बिहारी हैं
गागर में सागर भरते हैं वन्दन के अधिकारी हैं
हम अल्हड़ लेखन वाले उन पदचिन्हों पर चलते हैं
हिन्दी के उन आराधक......
"कविता के दिनकर" दिनकर ने भी हिंदी को गाया है
और मैथिली, भूषण ने कविता से राष्ट्र जगाया है
जिस हिंदी को पुरा काल से ऋषियों ने उच्चारा है
उस हिंदी को माता कहने का सौभाग्य हमारा है
उन माता औ मातृ-सुतों को सदा हृदय में धरते हैं
हिन्दी के उन आराधक......
प्रखर पाण्डेय
हरदोई
मो. 8546002677
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