White मैं उन्मुक्त स्वतंत्र विचारों वाली लड़की थी।
माँ की दुलारी बाप की हड़की थी।
जब व्याह हुआ उत्साह था दिल में,
देख रिवाज ससुराल के मैं भड़की थी।
फोन लगाया अम्मा को एक एक कर सब बात कही,
जो गलत नहीं था उसको भी ठहराया सही।
जंगल की लोमड़ सी, आया मुझमे ज्ञान नहीं,
भविष्य में क्या होगा मुझको ये ज्ञान नहीं।
मैं सच कहती हूँ, मैं उस से हूँ,
जिसको इज्जत मर्यादा का मान नहीं।
जो तुमपे जान न्योछावर कर दे,
मुझको उस पर पर कोई ध्यान नहीं।।
©Rajesh rajak
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