ये लिखना-विखना छोड़ ही देंगे
मेरे दिल से तेरे दिल का ,
ये क़लम का रिश्ता तोड़ ही देंगे
ये लिखना-विखना छोड़ ही देंगे
काहे को बर्बाद करें, ये स्याही तेरे प्यार में
हो कोरे कागज़ का जीवन, न्योछावर बेकार में
लगा के अंतिम बिंदु अबकी,
नोक कलम की मोड़ ही देंगे
ये लिखना-विखना छोड़ ही देंगे
मैंने तेरी यादों मे जो एक-एक शब्द पिरोया था
आज दोपहरी कोने में वो हर एक आखर रोया था
वो सारी कविता सारी ग़ज़लें फिर
से दिल को तोड़ ही देंगे..
ये लिखना-विखना छोड़ ही देंगे
केह गए पुरुख हमारे "बेटा कलम क्रांति लाती है"
कलयुग में बेकार पड़ी बेबस मरवादी जाती है
जब दिल तेरा न बदल सके तो
ख़याल-ए-दुनिया छोड़ ही देंगे..
ये लिखना-विखना छोड़ ही देंगे...
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