महबूब लौटा नहीं करते...
शेर-ओ-शायरी तो दिल बहलाने का ज़रिया है जनाब,
लफ़्ज़ काग़ज़ पर उतारने से महबूब लौटा नहीं करते।
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रस्ते में कल उनसे फिर मुलाकात होगई,
ना चाहते हुए भी आँखों ही आँखों में बात हो ,
उसका ख़याल मेरे मन पे ऐसा शा गया केगयीy….
पता नहीं कमबख्त कब दिन हुआ और कब रात हो गयी |
रस्ते में कल उनसे फिर मुलाकात होगई,
ना चाहते हुए भी आँखों ही आँखों में बात हो ,
उसका ख़याल मेरे मन पे ऐसा शा गया केगयीy….
पता नहीं कमबख्त कब दिन हुआ और कब रात हो गयी |
रस्ते में कल उनसे फिर मुलाकात होगई,
ना चाहते हुए भी आँखों ही आँखों में बात हो गयी,
उसका ख़याल मेरे मन पे ऐसा शा गया के….
पता नहीं कमबख्त कब दिन हुआ और कब रात हो गयी |
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