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dev merutha
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जो मौन रहे इतिहास में वो कायर कहलाए। हो चाहे बड़े धनुर्धर वो चाहे भीष्म कहलाए।। द्रोपदी के चीरहरण पर कृष्ण स्वयं ही आए। सुसभ्य राजसभा मगर कुल लाज बचा न पाए।। मूक दर्शक होकर सबके सब भागी होते जाते है। नाश यूंही नही होता उसके बीज बोए जाते है।। देव ©dev merutha
9 Love
रहे पृथक प्रेम में देह भला तो क्या हुआ। रूह हमारी परस्पर स्पष्टतया विलीन है।। देव ©dev merutha
11 Love
अंततः प्रेमी और प्रेमिकाएं हर वो बात भूल जाते है। जो उनके दरमियां हुई हो मगर वो नहीं भूल पाते तो केवल मौन जो रह जाता है उनके बीच आखिरी वक्त जाते- जाते।। ©dev merutha
16 Love
मानो अपने ख्वाबों को एकटक निहारना यादों को। वो लौट आएगी अपने घर को समेट पुरानी बातों को।। ©dev merutha
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