झिझक ...
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झिझक कर , वो मुझसे अपनी बात करती है ,
ख्वाबों में भी चुप्पी वाली मुलाकात करती है ,
जब भी पूछता हूँ उससे हाल ए दिल उसका ,
सकपका के , फिर शब्दों की शुरूआत करती है !!
जो मुझको देख लेती है , शर्म से शरमा जाती है ,
बात होती है ,बहुत कहने को , फिर भी बोल नही पाती है ,
गुमसुम सी होती है और बस आहें भरती है ,
मेरे पास ना रहने पे ,फोटो से ,मेरा दर्शंन करती है !!
पास जो आता हूँ तो तेज सांसों वाले हालात करती है ,
झिझक कर , वो मुझसे अपनी बात करती है !!
पता नही मन ही में ही क्या बड़बड़ाती रहती हैं ??
मुझको अपने पास बुलाने की तरकीब लगाती रहती हैं !
अंजाने से ,लाज के भय से ,कभी कभी काँप जाती हैं ,
मेरी मौजुदगी में , मेरी नीयत को , वो भाँप जाती हैं !!
धीरे धीरे , अपने भीतर रखे ,अनकहें जज्बात करती हैं ,
झिझक कर , वो मुझसे अपनी बात करती हैं !!
:- कृष्णा गुजराती
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