सर्द में सूरज की पहली किरण हूं मै
हूं गर्मी में पेड़ की छांव
बसंत में मै फूल की पहली कली हूं
हूं पतझड़ में सूनी सी शाम
सभी धर्म के लोग समाहित है मुझ में
दुनिया को राह दिखाने वाला
मै हूं हिंदुस्तान
हस कर करदू कुरबा खुद को, वतन पर
हा मेरी जवानी इतनी सस्ती है
होगा लहू रगो में तुम्हारी
मेरी रगो में देश भक्ति है
ये ४ पंगतिया
भारत के सबसे बड़े शायरी मंच नोजोटो
के तीसरे जन्मदिवस के नाम
थोड़ा धीरे चल ए जिंदगी
यू इतना तेज क्यों चली जा रही है
देख पीछे छुटते जा रहे है रिश्ते नाते सारे
इस पैसे के चक्कर में हो गए हैं आधे सारे
यही रह जाएगी सब चीजें मेरी
कुछ साथ मेरे ना जाएगा
अरे कर दू कुछ काम में भी ऐसा
के ये संसार सो साल भुला ना पाएगा
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