🌹गीत🌹
नाम वही है मगर समय ने बदल दिया जीवन-धारा!
जीवन-दशा हुई परिवर्तित,रंग-ढंग बिल्कुल न्यारा!!
लेकर लाठी निज हाथों में गिरते पड़ते चलता हूॅं!
बच्चों के सॅंग रहा शोर में,अब एकाकी रहता हूॅं!
रातों में थे गीत लिखे तब, अब गिनता रहता तारा!
जीवन-दशा हुई परिवर्तित,रंग-ढंग बिल्कुल न्यारा!१!
केवल साॅंसें ही साथी हैं, धड़कन बनी सहारा है!
इधर मृत्यु, उस पार ज़िंदगी, जीवन एक दुधारा है!
बंद- बंद अपना ही कमरा लगता हो जैसे कारा!
जीवन-दशा हुई परिवर्तित,रंग-ढंग बिल्कुल न्यारा!२!
©Vidya Bhushan Mishra
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