"गुफ्तगू"
के एक अर्शे से अधूरे हैं,
आकर मुकम्मल कर दे,
बिखरे इन जज्बातों को,
अपने साए में समेट ले,
जी करता है तुझसे एक शाम,
बैठकर ढेर सारी गुफ्तगू करूं,
अपनें सारे उलझनों से,
तुमको रूबरू करूं,
जिंदगी का हर कतरा,
तेरे साथ बाट लू,
तुझे अपना कह सकू,
या तेरी होकर रहूं।
©Dt Sapna Nova
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