नरेंद्र सैन...
बचपन बीत गया, कबी साथ मैं नहीं बिताया
वो २/३दिन का मिलना भी, लड़ाई जगड़ो मैं बिताया..।
जानते थे एक दूजे के बारे मै, ख़बर भी रखते थे, पर रहते अनजानों की तरह..।
साल बीते बचपन से जवानी मै आग्ये, किसी और की शादी मै मिले
पर नोक झोंक वहा करने लगे..,अब हाथों मैं फोन मिलगया था तो
नंबर भी बदल लिए,पर बातें फिर भी नहीं की कबी..।
दीदी से बातें बड़ी तो तेरे साथ भी, लड़ने लगे, तुजको भी याद करने लगे थे..।
कबी २/३ दिन से उपर नही मिले, ना कबी जाना
कैसे हो, क्या करते हो, कहा हो..।
दुबारा मिलना भी शादी मै हुआ,पर इस बार वो मिलना १०दिन का था...
वो लड़ना, देर रातों को बतलाना, घूमना फिरना,हक जमाना और
अजनबी से दोस्त बंजाना..।
हा वैसे तू छोटा है मुझसे, पर समझदार है
राखी नहीं बांधी कबी,पर हक पूरा जमाती हूं..।
इस दिन का अब खुदा से शुक्रिया करती हु
एक भाई तुझ जैसा नवाजा उसने....।
©Reena Tanwar
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