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Aryan Singh RajPut
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यूं सबों के लिए हवा ये मौसमी ठीक नही । ये तुम्हारी मुझपर बेवजह की बरहमी ठीक नही। जनाब!जरा संभल कर रोना लिपट कर मां के अंचल से । यूँ जहाँ नींव हो वहाँ इतनी नमी ठीक नही।। ©Aryan Singh RajPut
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जिस बाजार मेें बिक जाते हैं लोग दो कौङी मेें, वहीं ऐलान सरेआम है । हा ! इश्क है उससे और मैं हूँ हिन्दू वो मुसलमान है। मोहब्बत को तुम खुद हीं सर्वोपरि महजब हो बताते । तो फिर ये महजब के दुकान मेें मेरा इश्क क्यों बदनाम है । ©Aryan Singh RajPut
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