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गम को मैं ना छुपा सका पूछ बैठा जब मुझसे चांद उस रात रात-भर सुबक-सुबक कर मेरे संग-संग रोया चांद ©Govind Singh
Govind Singh
11 Love
रातों को तुझसे बतिया कर करता हूं मन हल्का चांद ना पूछ रात अमावस की कटती कितनी तन्हा चांद ©Govind Singh
9 Love
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भरी धूप में छत तो बरसात में छाता बन जाता हूं लगे भूख उनको तो उनकी भूख भी मैं मिटाता हूं फूलों की खुशबू से उनका जीवन मैं महकाता हूं देता हूं प्राण-वायु और ख़ुद नीलकंठ बन जाता हूं ©Govind Singh
17 Love
बढ़ चले आगे तो फिर रुकने की कोई चाह नहीं रोक पाए इन कदमों को बनी ऐसी कोई राह नहीं ©Govind Singh
12 Love
गुलाब की छांव में गुलाबी बरसात में गुलाब की शान में प्यारा-सा “गुलाब” ©Govind Singh
14 Love
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