मुझे कहने दो
मै और चुप रह नही सकता मुझे बेबाक कहने दो,
मैं इन्सां हूं मुझे तुम मेरी प्रत्येक बात कहने दो,
अगर मैं निकलू घर से तो दुनिया मुझे बदनाम करती है,
किसी से अगर बोलू तो ये उससे सवाल करती है,
छुपा कर लाख कर्म अपने ये खुदको साध समझती है,
मुझे चाहती है ये जानना खुद से अन्जान रहती है,
जगी जो ख्वाईशे दिलमें उन्हे तुम आजाद रहने दो,
मैं इन्सां हूं मुझे तुम मेरी प्रत्येक बात कहने दो,
मै हसता हूं तो इनको बडी तकलीफ होती है।
मुझे रोता देखकर ये चैन की नीद सोती है।
मै चुप होता हू तो ये मेरी दुखती रग टोहती है,
दुखा कर रग ये अन्दर से बडी ही खुश होती है,
मेरे हर दर्द को मुझको तुम खुद ही सहने दो,
मैं इन्सां हूं मुझे तुम मेरी प्रत्येक बात कहने दो,
मेरे हर काम से इनको बडी तकलीफ होती है,
उसकी कमियो की इनके पास लम्बी लिस्ट होती है,
करे गर खुद ये उसको तो गुणो की खान होती है,
इनकी ही नहीं उसमे गावँ की शान होती है,
मै और चुप रह नही सकता मुझे बेबाक कहने दो,
मैं इन्सां हूं मुझे तुम मेरी प्रत्येक बात कहने दो,
चलो माना के बहुतसी कमीया मुझमे है,
जो संस्कार मुझे मिले क्या वो तुममे है,
नही तो तुम मुझे मेरे हाल पर खुशहाल रहने दो,
नयी सुबह मे नवीन विचार को साथ रहने दो,
दफन जो राज है दिल में उन्हे तुम राज रहने दो,
मैं इन्सां हूं मुझे तुम मेरी प्रत्येक बात कहने दो,
लेखक - नवीन पाल इन्सां
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