ऐ जिंदगी, आज ना जाने क्यू
दफ़्न राज से पर्दा उठाया जाये
खुद की कहानी के कुछ
अंश यहाँ बयां किये जाये,
वक्त वो भी था,
किताबों का आशियाना था
वक्त की परवाह नहीं,
पुस्तकों का संग जो था,
निस्वार्थ भाव मे निहित
परोपकार की भावना लिए
शांत स्वभाव की धनि थी
वाणी विहिन शब्दों को समेटे
स्वयं की अभिदासी थी,
जिंदगी के सागर मे गोते लगाते
तैरने की इच्छा रखती थी
साधारण व्यक्तित्व की अभिमुर्ति
बुराई, छल के आवरण से कोसो दूर
जग खुशहाली को जोली मे समेटे फिरती थी
श्याम मनोहर की दीवानी
कला का कुछ अंश समेटे थी
मन वैरागी भले मेरा पर
पढ़ मन दुसरो का
प्रशंसा का पात्र उन्हें भी बनाती थी
पर पीड़ा को अपना मान
दुख दर्द की भागीदारी थी,
लिख रही हुँ अपनी कहानी जो
एक दिन सबको सुनानी थी !!
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