White सपने में खूब आता है गांव अब हमारे,
यादों में आते रहते गांवों के वो नजारे,
सपने में खूब आता है गांव अब हमारे।
फूलों का यूं महकना पक्षी का चहचहाना।
उठते ही देर सुबह दादा से गाली खाना।
फिर बैठ नाश्ते पर सब चाय पानी पीते,
चेहरे पे लिए मुस्की खुशहाली खूब जीते।
मुझको बुला रहे हैं नदियों के वो किनारे,
सपने में खूब आता है गांव अब हमारे,
यादों में आते रहते गांवों के वो नजारे।
वो मिट्टी वाली सड़कें बैलों की उसपे जोड़ी,
वो गर्म दूध वाले मटकों ने साढ़ी छोड़ी।
फूलों की क्यारियों को दादा का वो सजाना,
टूटी हुई संदूक में दादी का था खजाना।
सब काम कर रहे थे भगवान के सहारे,
सपने में खूब आता है गांव अब हमारे,
यादों में आते रहते गांवों के वो नजारे।
खेतों में दिख रहा था बस एक रंग धानी,
दिन काटते थे मेरे बगिया और बागवानी।
छावों में बुनते रहते सब बैठ करके डलिया,
स्कूल से बचाती थी रोज हमको पुलिया।
ढहती थी धीरे धीरे मिट्टी की वो दिवारें,
सपने में खूब आता है गांव अब हमारे,
यादों में आते रहते गांवों के वो नजारे।
©Shubham Mishra
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