प्यार- अब शायद कुछ भी नहीं
चाहत- ये भी शायद कुछ भी नहीं
लगाव- ये पुरानी बात हुई
अपनापन-किसी से कभी नहीं मिलता
मोह-स्वार्थ के शायद दूसरा नाम है।
बेइंतहा है ये इश्क ,सहेज सको तो चलो
कोई पसंद हो तो आईना करो, ना मांगने की इल्तिजा करो
नयन में उसे बसा कर , दूर से सला करो
ना दिल को जख्म दिया करो, हर ज़ख्म खुदी से सिला करो
ये शहर है मात्र रेह का, हर ज़ख्म को पर्दा करो
मतलबों की दुनिया में, बेमतलबों सा मिला करो
धड़कनों को सहेज कर, मुस्कुरा कर विदा करो
ये जिंदगी तो जंग है, यहाँ पे सब बेरंग है
सांस की है तय सीमा, ना सांसों को परेशां करो
है पसंन्द तुमको यदि, पास पास रहा करो
ना वादे कोई कसमें करो,पास तुम रहा करो
दे सको न साथ अगर,मुस्कुरा कर विदा करो
जिंदगी में हो अगर, जिंदगी बना करो
वादे ना किया करो,
साथ हो हमसफ़र तो
सांसों को न परेशां करो
मतलबी इस दुनिया में, मतलबी सा रहा करो
साथ चलना हो अगर
मुस्कुरा के मिला करो.....
©Adarsh k Tanmay
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