वही शख्स मेरे लश्कर से बग़ावत कर गया,
जीत कर सल्तनत जिसके नाम करनी थी।
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मित्रों के साथ लौंडे कितना भी "लगा के तीन पेग बलिये" पर नाच करते हुए रौला झाड़ते हों, अकेले में तो RS और IB पीकर "चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है" सुनते हुए बोतले ही तोड़नी है!
#दिल_ढूँढता_है
मित्रों के साथ लौंडे कितना भी "लगा के तीन पेग बलिये" पर नाच करते हुए रौला झाड़ते हों, अकेले में तो RS और IB पीकर "चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है" सुनते हुए बोतले ही तोड़नी है!
#दिल_ढूँढता_है
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हम उस दौर से हैं जब अपने क्रश से बात करने की हिम्मत जुटाते जुटाते ट्यूशन का बैच ही खत्म हो जाता था...स्कूल बदल जाते थे..और कई बार शहर भी..
#शुभ_रात्रि
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