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Rizwan Khan
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है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है ©Rizwan Khan
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Na khuch pane ki tamanna h, Na khuch khone ka dar! Na duniya achi lage Na apna ghar!! ©Rizwan Khan
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उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
9 Love
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना daag delhivi
मामूली सा सवाल हूं मैं, लोग कहते तेरा जवाब नही رضوان خان
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