★गह्वर★
घना अंधेरा, दूर सवेरा,
पथ में पर्वत और खाई है।
साथ न तेरा, रात का फेरा,
बस मरघट की तन्हाई है।।
अटल तेरा विश्वास सदा ही,
मुझमें नित साहस भरता है।
कठिन सफर है, दूर किनारा,
प्रतिपल उत्साहित करता है।।
जितना ही तेरी ओर बढ़ूँ मैं,
दीप्ति दीप की बढ़ती है।
उस किरण पुँज की दिव्य दाह,
मेरा भव-बंधन भंजन करती है।
पता नहीं कब मिले किनारा,
शेष अभी कितना है चलना।
पर एक निवेदन है तुमसे कि,
सदा मेरा पथ दर्शन करना।।
c✍️ जय
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