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#जिल्दसाज़ी में मसरूफ़ हूँ..सब मौलिक लिखता हूँ
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Shankar Singh Rai
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मन उदास हो तो खाने के कई बंडल दूध मुरब्बे अंचार सड़ते हुए कई फल सब एक-एक करके उठते हैं पालती में और जाके खेत होते हैं कचरे की बाल्टी में बजबजाती बू जब कमरे में उतरती है उसकी नजर मुसलसल कचरे पे ठहरती है वो सोचता है आख़िर ऐसी भी क्या वजह है सड़ता है एक जग-ह उसपर भी क्यों ये कचरा कहीं बाल्टी से खुद ही उठकर नही जाता गोया महीनों हो गए ..वो घर नही जाता :/शंकर ©Shankar Singh Rai
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