झूम के बरसे सावन
गरज के बरसे बादल
पिय दर्शन की प्यासी मैं
मचल जाए हाय मेरा मन
विरह व्यथा मैं किसे सुनाऊं
मन को अपने कैसे समझाऊं
नाम तेरे जो लिखती जाऊं
वो खत मैं तुझ तक कैसे पहुंचाऊं
नहीं लगता अब मेरा मन
अब तो आजा मेरे साजन
घड़ियां जानें कितनी बीत गईं
अब तो आ गया है सावन
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