#नज़्म
आसमानों की चाह रखने वालों को
जमीं के लिए तरसते देखा है,
खुद शोलों में रहकर औरों के लिए हमने,
सावन को बरसते देखा है।
क्य़ा कहना इस रंज-ए-सफ़र का !
सहारों को वीरां सफ़र में बिछुड़ते देखा है,
दिनभर जो महफिल में मशगूल रहते हैं,
ढ़ली शाम तन्हाईय़ों में उनको तड़पते देखा है।
ग़म न कर ज़िन्दगी ! सफ़र अभी बाक़ी है,
कई लम्हें गुजरने हैं, कईयों को गुजरते देखा है ।
__सावन
©T.C.Sawan
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