नज़र
नज़र मेरी थी, नज़ारा उनका था
जिंदगी मेरी थी, सहारा उनका था
रुह मेरी थी, आसरा उनका था
कुछ यूँ बसे थे एक-दूजे की नज़र में
कि कब्र मेरी थी जनाज़ा उनका था ।
तुने सूरत नहीं मेरी सीरत को अपनाया,
मेरी खुबियो से ज़्यादा मेरी कमियों
को अपना बनाया,
यूँ तो तारे बहोत हैं आसमाँ में मगर
शूक्रिया उस रब का जिसने
मेरी रातों का चाँद तुझे बनाया ।
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