माहोल
नयनात घोर चिंता हृदयात आस नाही,
आली जरी दिवाळी, माहोल खास नाही!
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दिसतात बघ फुले ती चित्तास वेधणारी,
नकलीच शेवटी ती, कसलाच वास नाही!
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आहे प्रवाह जैसा पोहून पार हो ना,
साधेपणात येथे, होणार त्रास नाही!
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खातात साखरेचे खावोत ते भलेही,
द्यावे भुक्यास थोडे, कोणास ध्यास नाही!
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दिनरात राबल्यावर हातात पीक आले,
मालास भाव नाही, पोटात घास नाही!
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चालू असेच आहे चालेल या पुढेही,
उजळेल भाग्य ऐसा, येणार मास नाही!
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लिहतोय आज सारे पाहून मी हताशा,
येतील दिन सुखाचे, जर तू उदास नाही!
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जयराम धोंगडे, नांदेड
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©Jairam Dhongade
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