जो असाधारण है
वही तो साधारण व सरल दिखता है
भरोसा ना हो तो
अब्दुल कलाम को ही देख लो
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संदेह के घेरे इतने बड़े होते हैं कि
"शीलं परम भूषणं"
लिखने वाला व्यक्ति भी
इस घेरे में आसानी से आ जाता है
यही कृत्य सद्य:कालीन मानसिकता का पर्याय हो सकता है,
ऐसी मानसिकताओं को सीखना चाहिए
"पिण्डेष्वनास्था खलु भौतिकेषु"
के संदर्भ में विचार की सूक्ति ही शरीर का आवरण गढ़ती है और
आवरण से बाहर होना तो अति सामान्य होगा
महज़ सामान्य होना ही शील कैसे बनायेगा ??
संदेह के घेरे इतने बड़े होते हैं कि
"शीलं परम भूषणं"
लिखने वाला व्यक्ति भी
इस घेरे में आसानी से आ जाता है
यही कृत्य सद्य:कालीन मानसिकता का पर्याय हो सकता है,
ऐसी मानसिकताओं को सीखना चाहिए
"पिण्डेष्वनास्था खलु भौतिकेषु"
के संदर्भ में विचार की सूक्ति ही शरीर का आवरण गढ़ती है और
आवरण से बाहर होना तो अति सामान्य होगा
महज़ सामान्य होना ही शील कैसे बनायेगा ??
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बुद्धिमान
___________________
बुद्धिमान को
कहाँ पंख होते हैं ,
उन्हें समझने होते हैं
अनपढ़ होकर भी
भावनाओं के
शब्द !
जैसे मां समझती है
कब झुनझुना बजाना है
____________________
भरत राजगुरु
बुद्धिमान
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बुद्धिमान को
कहाँ पंख होते हैं ,
उन्हें समझने होते हैं
अनपढ़ होकर भी
भावनाओं के
शब्द !
जैसे मां समझती है
कब झुनझुना बजाना है
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भरत राजगुरु
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भान्दरा री ऄक जात व्है
मिनख़ां जैड़ी ,
अर् मिनखां री ऄक जात रैवे
भान्दरा जैड़ी
फैर भी मिनख
अचम्भो करे
कि
अरे देख
मिनख जेड़ो
भान्द्रों
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