खुली जुल्फें को आज बहने दो,
हवा का रुख बदलने दो.....
न बाँधो केश महफ़िल में,
खुली जुल्फें को आज बिखरने दो.....
जिगर में आस जगी है आज,
नया दिन तो निकलने दो.....
खुली जुल्फों को बांधो मत तुम,
बहकती है तो बहकने दो.....
तबस्सुम नाज़नीन का,
जरा कुछ तो आज उसे निखरने दो....
समझ आता नहीं कुछ "भावसार",
मुझे कुछ तो आज समझने दो.....❤🌸✨💫
©SMILE KILLER
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