Prachi Singh

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“मुझमें थी एक विकलता तुम्हारे लिये, द्वार दीपक-सा जलता तुम्हारे लिये, और जो होता पता तुम यहीं आओगे, मैं ना घर से निकलता तुम्हारे लिये.”

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White मेरा मन शून्य होना चाहता है। शून्य बन शून्य छूना चाहता है।। ©Prachi Singh

#good_night_images #विचार  White मेरा मन शून्य होना चाहता है।
शून्य बन शून्य छूना चाहता है।।

©Prachi Singh
#कविता #poetryunplugged
#विचार

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जो नज़र से उतर जाए फिर वो नजर के, . . सामने भी आ जाए तो नजर नही आता!! ©Prachi Singh

#विचार  जो नज़र से उतर जाए फिर वो नजर के, 
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सामने भी आ जाए तो नजर नही आता!!

©Prachi Singh

जो नज़र से उतर जाए फिर वो नजर के, . . सामने भी आ जाए तो नजर नही आता!! ©Prachi Singh

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#कविता #shreeram  Shree Ram अयोध्या हर्षित हो, पुलकित हो,उत्सव मनायें, रामलला आये मेरे रामलला आये ।
पुष्प बिछाए कोई नैना बिछाए,
सरयू के तट देखो कैसे मुस्काये,
रामलला आये मेरे रामलला आये....
गलियां सजी ऐसे,जैसे कोई दुल्हन सजायें,
सदियों के दीप बुझे आज जगमगायें,
रामलला आये मेरे रामलला आयें ....

©Prachi Singh

#shreeram

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#विचार #thelunarcycle  विश्वास पत्थर को देव बना देती है जबकि अविश्वास मानव को दानव ।

©Prachi Singh
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