White खामोश चीखें
नज़रों की हैवानियत से फिर एक फूल मुरझा गया,
जिंदगी के बाग़ में एक और रंग फीका पड़ गया।
चीखों की गूंज में खो गई उसकी मासूमियत,
और इंसानियत की चादर फिर से तार-तार हो गया।
हर गली, हर चौक पर अब डर का साया है,
जिस समाज में जी रहे हैं, वो आज भी जख्म खाया है।
खामोशियों में छिपी उसकी दर्द की कहानी,
जिनके हाथों में उसे हिफ़ाज़त थी, वही बने क़ातिल जुबानी।
आसमान भी रोया, धरती भी कांपी,
पर फिर भी इंसानियत नहीं जागी, न शर्म आई।
हर बार एक उम्मीद से नजरें उठती हैं,
कब बदलेगा ये समाज, ये सवाल हर दिल में उठती हैं।
वो नन्ही कली, जिसने देखा था सपना खुली आंखों से,
अब वो सिमट गई है, दर्द के साए में, अपने ही आंसुओं से।
पर कोई सुनने वाला नहीं, बस कागज़ों में सिमट कर रह जाती है,
एक और मासूम की कहानी, जो इस दुनिया से कहीं खो जाती है।
©UNCLE彡RAVAN
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here