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#कविता

कविता कोश

117 View

#कविता

कविता कोश

90 View

#कविता #Parchhai  आधी अधूरी जैसी भी हूं 
सबसे पहले इंसान हूं मैं 
नासमझ नादान जो भी हूं 
आंखों में आसूं लिए इक आस हूं मैं 
माना हूं भरोसे में.....
मैं कुछ से धोखे खाईं 
राहों में मुश्किले तो सभी की आनी है 
पर किससे कहूं?
सबसे पहले इंसान हूं मैं।।

©Sarita Kumari Ravidas

#Parchhai कविताएं कविता कोश कविता कविताएं कविता कोश

135 View

मेरे सँग आप रहो शिवजी, भले जग सँग ये न दे आप के दम से ये सेवक,, जुझेगा हर खतरे से भले जग करता है वैसा तेरी भक्ति नहीं भाती 2 तब भी साथ तुम मेरा, नही तजना शिव शंभू हे! ©कवि प्रभात

#कविता  मेरे सँग आप रहो शिवजी, भले जग सँग ये न दे 
आप के दम से ये सेवक,, जुझेगा हर खतरे से
भले जग करता है वैसा  तेरी भक्ति नहीं भाती 2
तब भी साथ तुम मेरा, नही तजना शिव शंभू हे!

©कवि प्रभात

कविता कोश

12 Love

#अदृश्य_दीवारें #कविता  White कांधे से कांधा मिला कर 
चलने की सोच थी
खुद को साबित करने की
दिल में लगी भूख थी
मंजिल के प्रकाश में
जोश जुनून का सहरा था।
मालूम न था राहों में
अदृश्य दीवार का पहरा था।
जिसके नुकीले सरिये ने
घाव दिया गहरा था।
जिसने हमारे तन मन को
अंदर तक घायल किया
हमारे हर अरमानों का
बेरहमी से क़तल किया।
©अलका मिश्रा

©alka mishra

#अदृश्य_दीवारें कविता कविता कोश प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता कोश

99 View

#कविता

कविता कोश

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कविता कोश

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कविता कोश

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#कविता #Parchhai  आधी अधूरी जैसी भी हूं 
सबसे पहले इंसान हूं मैं 
नासमझ नादान जो भी हूं 
आंखों में आसूं लिए इक आस हूं मैं 
माना हूं भरोसे में.....
मैं कुछ से धोखे खाईं 
राहों में मुश्किले तो सभी की आनी है 
पर किससे कहूं?
सबसे पहले इंसान हूं मैं।।

©Sarita Kumari Ravidas

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मेरे सँग आप रहो शिवजी, भले जग सँग ये न दे आप के दम से ये सेवक,, जुझेगा हर खतरे से भले जग करता है वैसा तेरी भक्ति नहीं भाती 2 तब भी साथ तुम मेरा, नही तजना शिव शंभू हे! ©कवि प्रभात

#कविता  मेरे सँग आप रहो शिवजी, भले जग सँग ये न दे 
आप के दम से ये सेवक,, जुझेगा हर खतरे से
भले जग करता है वैसा  तेरी भक्ति नहीं भाती 2
तब भी साथ तुम मेरा, नही तजना शिव शंभू हे!

©कवि प्रभात

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#अदृश्य_दीवारें #कविता  White कांधे से कांधा मिला कर 
चलने की सोच थी
खुद को साबित करने की
दिल में लगी भूख थी
मंजिल के प्रकाश में
जोश जुनून का सहरा था।
मालूम न था राहों में
अदृश्य दीवार का पहरा था।
जिसके नुकीले सरिये ने
घाव दिया गहरा था।
जिसने हमारे तन मन को
अंदर तक घायल किया
हमारे हर अरमानों का
बेरहमी से क़तल किया।
©अलका मिश्रा

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