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videoshow# hindi video song#गेहूं की फसल लगाने के लिए खेत को कर रहे हैं उपजाऊ

108 View

#विचार  White घटा स्याह अंधेरा लेकर,
बरसने को तैयार हैं।
लगता है इस बार फसल
मुस्कुरा रही है और किसान की आंखों में खुशी बरस रही है।

©Satish Kumar Meena

फसल मुस्कुरा रही है

117 View

दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं ©Ghumnam Gautam

#भिन्न #ऋतुएँ #ghumnamgautam #अंश  दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर
ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं

जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने
हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं

©Ghumnam Gautam
#Quotes  White जीवन की रूप रेखा को कुछ यूं स्वप्नाया था उसने
सुगंध उठेगा कल सबेरा मेरा
यही विचारकर
प्रेम बीज को अतीत की भूमि में दबाया था उसने‌
दिन गुजरे सप्ताह गुजरे 
न विश्वास की सिंचाई
न गलतियों की निराई
न जुबानी जहर को पौधों से छुटाया था उसने
फिर सहसा एक दिन खींच ले गयीं 
अभिलाषाएं उसे फसल की ओर
चींखने लगा जोर जोर से
निखोलने लगा सुषुप्त पड़ चुके प्रेम बीज को
मढ़ने लगा आरोप उसके प्रेमत्व पर
क्योंकि आज, वर्तमान पर मुरझा सा 
नीरस पुष्प ही पाया था उसने
काश! झांक पाता सहस्त्रों 
बार किये उन वादों की ओर 
जिन्हें हर गलती के बाद दोहराया था उसने

©Nitu Singh जज़्बातदिलके

जीवन की रूप रेखा को कुछ यूं स्वप्नाया था उसने सुगंध उठेगा कल सबेरा मेरा यही विचारकर प्रेम बीज को अतीत की भूमि में दबाया था उसने‌ दिन गुजरे स

81 View

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videoshow# hindi video song#गेहूं की फसल लगाने के लिए खेत को कर रहे हैं उपजाऊ

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#विचार  White घटा स्याह अंधेरा लेकर,
बरसने को तैयार हैं।
लगता है इस बार फसल
मुस्कुरा रही है और किसान की आंखों में खुशी बरस रही है।

©Satish Kumar Meena

फसल मुस्कुरा रही है

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दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं ©Ghumnam Gautam

#भिन्न #ऋतुएँ #ghumnamgautam #अंश  दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर
ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं

जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने
हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं

©Ghumnam Gautam
#Quotes  White जीवन की रूप रेखा को कुछ यूं स्वप्नाया था उसने
सुगंध उठेगा कल सबेरा मेरा
यही विचारकर
प्रेम बीज को अतीत की भूमि में दबाया था उसने‌
दिन गुजरे सप्ताह गुजरे 
न विश्वास की सिंचाई
न गलतियों की निराई
न जुबानी जहर को पौधों से छुटाया था उसने
फिर सहसा एक दिन खींच ले गयीं 
अभिलाषाएं उसे फसल की ओर
चींखने लगा जोर जोर से
निखोलने लगा सुषुप्त पड़ चुके प्रेम बीज को
मढ़ने लगा आरोप उसके प्रेमत्व पर
क्योंकि आज, वर्तमान पर मुरझा सा 
नीरस पुष्प ही पाया था उसने
काश! झांक पाता सहस्त्रों 
बार किये उन वादों की ओर 
जिन्हें हर गलती के बाद दोहराया था उसने

©Nitu Singh जज़्बातदिलके

जीवन की रूप रेखा को कुछ यूं स्वप्नाया था उसने सुगंध उठेगा कल सबेरा मेरा यही विचारकर प्रेम बीज को अतीत की भूमि में दबाया था उसने‌ दिन गुजरे स

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