White ज़िन्दगी भर चला, ज़िन्दगी के लिए,
फिर भी सारा सफर, अधुरा रहा।
ना ही तृष्णा मिटी, ना मिटी लालसा,
एक पथ से, मै दुजे पे चलता रहा।
हर गली, हर शहर, हर इक मोड़ पर,
साथ में कुछ चले,कुछ गये छोड़ कर।
सोचता ही रहा, जिन्दगी क्या बला,
खुद से खुद का हर इक प्रश्न करता रहा।
लौट कर फिर किसी ने,ना कुछ भी कहा,
प्रश्न था जो मेरा, प्रश्न ही रह गया।
इक किरन कोई,धुँधली सी दिख ना सकी,
थी उजाले की आशा, भटकता रहा।
ज़िन्दगी भर चला ज़िन्दगी के लिए,
फिर भी सारा सफर, अधुरा रहा।
मनीष गाजीपुरी
©Manish ghazipuri
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