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#वीडियो

"टिम्मी कछुआ और बोलने वाला कंकड़" - एक आकर्षक यात्रा पर निकलें, एक हरित जंगल में जहां एक युवा कछुआ नामक टिमी अपने अद्भुत राज को खोजता है। अप

117 View

#वीडियो

"संदेह की परछाईं: बैंक डकैती का साहसी अंत" - शहर की एक बड़ी बैंक डकैती की साजिश का पर्दाफाश करने के लिए रिया, एक तकनीकी विशेषज्ञ, अकेले ही ए

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#मोटिवेशनल #मोटिवेशन #विनोद #मिश्र #मॉक

"बुद्धिमान व्यक्ति केवल संदेह करता है. विश्वास कभी नहीं करता है.वह तो संदेह को प्रगति की सीढ़ी मानता है." #विनोद #मिश्र #मोटिवेशन #मॉक 😀

99 View

#beingoriginal #nojotohindi

योद्धा, संदेह #beingoriginal #nojotohindi

81 View

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती। भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए. ©person

 गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?


यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती।

भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: 
 
हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. 
 
मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. 
 
मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. 
 
अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. 
 
उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. 
 
भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए.

©person

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि

18 Love

 White अंनत के उस पार भी कुछ होगा क्या?
जीवन में सघर्षो के , हासिल कुछ उत्कर्षो के, जीवन
में निष्कर्षो के अंत में, अंनत के उस पार कुछ होगा क्या?

 चिंता में मोहक जीवन के , धीरज में क्षणों के, समृति में उन स्मरणो के अंत में,  अनंत के उस पार कुछ होगा क्या?

वंचित जीवन सुख के, दिवास्वप्न  में क्षणों के,
घटित होता जीवन चरणो के, भय की आतुर शंका के
 अंत में, अंनत के उस पार कुछ होगा क्या?

स्मरणों  में इन वर्णों के, ढलती देही में चक्रो के,
विवेक में खोती आनन्दमयता के, हथेली से बहते 
नीर के अंत में, अंनत के उस पार कुछ होगा क्या?

©Saroj Bhatia

# मन का संदेह #

63 View

#वीडियो

"टिम्मी कछुआ और बोलने वाला कंकड़" - एक आकर्षक यात्रा पर निकलें, एक हरित जंगल में जहां एक युवा कछुआ नामक टिमी अपने अद्भुत राज को खोजता है। अप

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#वीडियो

"संदेह की परछाईं: बैंक डकैती का साहसी अंत" - शहर की एक बड़ी बैंक डकैती की साजिश का पर्दाफाश करने के लिए रिया, एक तकनीकी विशेषज्ञ, अकेले ही ए

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#मोटिवेशनल #मोटिवेशन #विनोद #मिश्र #मॉक

"बुद्धिमान व्यक्ति केवल संदेह करता है. विश्वास कभी नहीं करता है.वह तो संदेह को प्रगति की सीढ़ी मानता है." #विनोद #मिश्र #मोटिवेशन #मॉक 😀

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#beingoriginal #nojotohindi

योद्धा, संदेह #beingoriginal #nojotohindi

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गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती। भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए. ©person

 गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?


यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती।

भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: 
 
हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. 
 
मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. 
 
मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. 
 
अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. 
 
उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. 
 
भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए.

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गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि

18 Love

 White अंनत के उस पार भी कुछ होगा क्या?
जीवन में सघर्षो के , हासिल कुछ उत्कर्षो के, जीवन
में निष्कर्षो के अंत में, अंनत के उस पार कुछ होगा क्या?

 चिंता में मोहक जीवन के , धीरज में क्षणों के, समृति में उन स्मरणो के अंत में,  अनंत के उस पार कुछ होगा क्या?

वंचित जीवन सुख के, दिवास्वप्न  में क्षणों के,
घटित होता जीवन चरणो के, भय की आतुर शंका के
 अंत में, अंनत के उस पार कुछ होगा क्या?

स्मरणों  में इन वर्णों के, ढलती देही में चक्रो के,
विवेक में खोती आनन्दमयता के, हथेली से बहते 
नीर के अंत में, अंनत के उस पार कुछ होगा क्या?

©Saroj Bhatia

# मन का संदेह #

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