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सोलह शृंगार । (Read in caption) ©Jayesh gulati

#शायरी  सोलह शृंगार ।

(Read in caption)

©Jayesh gulati

*सोलह शृंगार* मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को । वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।। पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका । जैसे बा

11 Love

#shayari_challenge #urdupoetrylines #shayrioftheday #sad_shayari #top_newser #urduposts  हम उन्हें वो हमें भुला बैठे 
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे 

हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे 
तीर मारे थे तीर खा बैठे 

आँधियो जाओ अब करो आराम 
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे 

जी तो हल्का हुआ मगर यारो 
रो के हम लुत्फ़-ए-ग़म गँवा बैठे 

बे-सहारों का हौसला ही क्या 
घर में घबराए दर पे आ बैठे 

जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम 
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे 

हम रहे मुब्तला-ए-दैर-ओ-हरम 
वो दबे पाँव दिल में आ बैठे 

उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान 
रह गए सारे बा-वफ़ा बैठे 

हश्र का दिन अभी है दूर 'ख़ुमार' 
आप क्यूँ ज़ाहिदों में जा बैठे 

 ख़ुमार बाराबंकवी

#sad_shayari हम उन्हें वो हमें भुला बैठे दो गुनहगार ज़हर खा बैठे हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे तीर मारे थे तीर खा बैठे

108 View

#sad_quotes #pujaudeshi #crime  White गहरी बात......
दर्द का एहसास सब क़ो पता हैं दर्द से बचना 
हर कोई सीख गया हैं पर जब दर्द देने की बात 
आती हैं तो खुद क़ो नहीं दूसरो क़ो आसानी से 
दर्द दिया जाता हैं ना उम्र का लिहाज ना कोई 
पर्दा होता हैं बस जिस्म की प्यास और पागल 
पन का जनून जो इतना घातक हैं खुद के लिए 
भी और जिसको दे रहे हो, अपने लिए मौत माँग 
रहे हो क्या जो सही गलत का एहसास जाता रहा 
दर्द,,,, तुम्हे भी होगा पर तब तक बहुत देर हो चुकी होंगी, फंदा गले मे कस जाएगा जान अटक 
जाएगी गर्दन टूट कर झूल जाएगी और पाँव ज़मीन छू ना पाएगे ऐसी मौत का इंतज़ाम ना कर दर्द क़ो जान 
ले रे बंदे जुल्म ना कर,,, please जुल्म ना कर..
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻, 🥹🥹

©puja udeshi

#sad_quotes #pujaudeshi #crime गहरी बात...... दर्द का एहसास सब क़ो पता हैं दर्द से बचना हर कोई सीख गया हैं पर जब दर्द देने की बात आती हैं त

360 View

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

17 Love

सोलह शृंगार । (Read in caption) ©Jayesh gulati

#शायरी  सोलह शृंगार ।

(Read in caption)

©Jayesh gulati

*सोलह शृंगार* मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को । वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।। पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका । जैसे बा

11 Love

#shayari_challenge #urdupoetrylines #shayrioftheday #sad_shayari #top_newser #urduposts  हम उन्हें वो हमें भुला बैठे 
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे 

हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे 
तीर मारे थे तीर खा बैठे 

आँधियो जाओ अब करो आराम 
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे 

जी तो हल्का हुआ मगर यारो 
रो के हम लुत्फ़-ए-ग़म गँवा बैठे 

बे-सहारों का हौसला ही क्या 
घर में घबराए दर पे आ बैठे 

जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम 
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे 

हम रहे मुब्तला-ए-दैर-ओ-हरम 
वो दबे पाँव दिल में आ बैठे 

उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान 
रह गए सारे बा-वफ़ा बैठे 

हश्र का दिन अभी है दूर 'ख़ुमार' 
आप क्यूँ ज़ाहिदों में जा बैठे 

 ख़ुमार बाराबंकवी

#sad_shayari हम उन्हें वो हमें भुला बैठे दो गुनहगार ज़हर खा बैठे हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे तीर मारे थे तीर खा बैठे

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#sad_quotes #pujaudeshi #crime  White गहरी बात......
दर्द का एहसास सब क़ो पता हैं दर्द से बचना 
हर कोई सीख गया हैं पर जब दर्द देने की बात 
आती हैं तो खुद क़ो नहीं दूसरो क़ो आसानी से 
दर्द दिया जाता हैं ना उम्र का लिहाज ना कोई 
पर्दा होता हैं बस जिस्म की प्यास और पागल 
पन का जनून जो इतना घातक हैं खुद के लिए 
भी और जिसको दे रहे हो, अपने लिए मौत माँग 
रहे हो क्या जो सही गलत का एहसास जाता रहा 
दर्द,,,, तुम्हे भी होगा पर तब तक बहुत देर हो चुकी होंगी, फंदा गले मे कस जाएगा जान अटक 
जाएगी गर्दन टूट कर झूल जाएगी और पाँव ज़मीन छू ना पाएगे ऐसी मौत का इंतज़ाम ना कर दर्द क़ो जान 
ले रे बंदे जुल्म ना कर,,, please जुल्म ना कर..
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻, 🥹🥹

©puja udeshi

#sad_quotes #pujaudeshi #crime गहरी बात...... दर्द का एहसास सब क़ो पता हैं दर्द से बचना हर कोई सीख गया हैं पर जब दर्द देने की बात आती हैं त

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गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

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