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New राखी इनायत Status, Photo, Video

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White न रेत में... न देह में... न मन मे ... न अहसास में.. न जिस्म में... इश्क तो बस सिमट जाता है, सिर्फ और सिर्फ रूह में...! न आयत में.. न इनायत में.... न चाहत में .. न ख्वाहिश में.. इश्क़ तो बसता है सिर्फ रूह की इबादत में..!! ©Shivkumar barman

#ख्वाहिश #चाहता #अहसास #कविता #जिस्म #इश्क  White न रेत में... 
न देह में...
न मन मे ... 
न अहसास में..
न जिस्म में...
इश्क तो बस सिमट जाता है,
सिर्फ और सिर्फ रूह में...!
न आयत में.. 
न इनायत में....
न चाहत में .. 
न ख्वाहिश में..
इश्क़ तो बसता है सिर्फ रूह की इबादत में..!!

©Shivkumar barman

#रेत में... न #देह में... न #मन मे ... न #अहसास में.. न #जिस्म में... #इश्क तो बस सिमट जाता है, सिर्फ और सिर्फ रूह में...! न आयत म

15 Love

#कविता  बचपन अभी गया नहीं,
खेल खिलौने बाकी है।
इन मासूमों के हाथों में,,
नादानी की राखी है।।
जग का इनको पता नहीं,
इंसान फरिश्ता धरती का।
कुछ ऐसे भी होते है लाड़ो,,
जिनका काम है गलती का।।
ऐसे सख्शों से बचना है,
जिनकी आंखों में शर्म नहीं।
अपना पराया कोई नहीं,
नियत खोटी और मर्म नहीं।।
सच्चे दिल के कम ही मिलेंगे,
पहचानना मुश्किल होगा।
हे लाड़ो! अपनी रक्षा का,,
स्वयं भार उठाना तुझे होगा।
कानून की आंखे बन्द है,
बस! पट्टी हटाना बाकी है।
इन मासूमों के हाथों में,, 
नादानी की राखी है।।

©Satish Kumar Meena

@नादानी की राखी

144 View

White तुझे चाहा नही दिल ने पूजा है। तू नही जानता क्या इन्याते हम पे की है। रूठी जिंदगी से फिर रूबरू करवा दिया, और अब कुछ नही चाहिए। ©Ramnik

#तेरी  White तुझे चाहा नही दिल ने पूजा है।
तू नही जानता क्या इन्याते हम पे की है।
रूठी जिंदगी से फिर रूबरू करवा दिया,
और अब कुछ नही चाहिए।

©Ramnik

#तेरी इनायत

16 Love

White वो देखें तो उनकी इनायत, न देखें तो रोना क्या । जो दिल उनके पास है उसका , होना क्या, न होना क्या ।। ©TubeLights

 White वो देखें तो उनकी इनायत,
न देखें तो रोना क्या ।

जो दिल उनके पास है उसका ,
होना क्या, न होना क्या ।।

©TubeLights

वो देखे तो उनकी इनायत

12 Love

गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में ,  इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार ।
निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।।
बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार ।
चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।।
मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार ।
तुम जननी हो इस जग की .....

छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार ।
बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।।
बन चंडी अब पहन गले में ,  इनको मुंडों का तू हार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार ।
ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।।
जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार ।
खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।।
मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष

12 Love

White न रेत में... न देह में... न मन मे ... न अहसास में.. न जिस्म में... इश्क तो बस सिमट जाता है, सिर्फ और सिर्फ रूह में...! न आयत में.. न इनायत में.... न चाहत में .. न ख्वाहिश में.. इश्क़ तो बसता है सिर्फ रूह की इबादत में..!! ©Shivkumar barman

#ख्वाहिश #चाहता #अहसास #कविता #जिस्म #इश्क  White न रेत में... 
न देह में...
न मन मे ... 
न अहसास में..
न जिस्म में...
इश्क तो बस सिमट जाता है,
सिर्फ और सिर्फ रूह में...!
न आयत में.. 
न इनायत में....
न चाहत में .. 
न ख्वाहिश में..
इश्क़ तो बसता है सिर्फ रूह की इबादत में..!!

©Shivkumar barman

#रेत में... न #देह में... न #मन मे ... न #अहसास में.. न #जिस्म में... #इश्क तो बस सिमट जाता है, सिर्फ और सिर्फ रूह में...! न आयत म

15 Love

#कविता  बचपन अभी गया नहीं,
खेल खिलौने बाकी है।
इन मासूमों के हाथों में,,
नादानी की राखी है।।
जग का इनको पता नहीं,
इंसान फरिश्ता धरती का।
कुछ ऐसे भी होते है लाड़ो,,
जिनका काम है गलती का।।
ऐसे सख्शों से बचना है,
जिनकी आंखों में शर्म नहीं।
अपना पराया कोई नहीं,
नियत खोटी और मर्म नहीं।।
सच्चे दिल के कम ही मिलेंगे,
पहचानना मुश्किल होगा।
हे लाड़ो! अपनी रक्षा का,,
स्वयं भार उठाना तुझे होगा।
कानून की आंखे बन्द है,
बस! पट्टी हटाना बाकी है।
इन मासूमों के हाथों में,, 
नादानी की राखी है।।

©Satish Kumar Meena

@नादानी की राखी

144 View

White तुझे चाहा नही दिल ने पूजा है। तू नही जानता क्या इन्याते हम पे की है। रूठी जिंदगी से फिर रूबरू करवा दिया, और अब कुछ नही चाहिए। ©Ramnik

#तेरी  White तुझे चाहा नही दिल ने पूजा है।
तू नही जानता क्या इन्याते हम पे की है।
रूठी जिंदगी से फिर रूबरू करवा दिया,
और अब कुछ नही चाहिए।

©Ramnik

#तेरी इनायत

16 Love

White वो देखें तो उनकी इनायत, न देखें तो रोना क्या । जो दिल उनके पास है उसका , होना क्या, न होना क्या ।। ©TubeLights

 White वो देखें तो उनकी इनायत,
न देखें तो रोना क्या ।

जो दिल उनके पास है उसका ,
होना क्या, न होना क्या ।।

©TubeLights

वो देखे तो उनकी इनायत

12 Love

गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में ,  इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार ।
निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।।
बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार ।
चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।।
मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार ।
तुम जननी हो इस जग की .....

छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार ।
बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।।
बन चंडी अब पहन गले में ,  इनको मुंडों का तू हार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार ।
ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।।
जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार ।
खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।।
मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष

12 Love

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