नमन मातृभाषा काव्य मंच
दिनांक -१३/१०/२०२४
रावण
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
सोना के लंका रावण के,बढ़ावय ओखर मान ।
श्रीराम किरपा ले जर गिन, ये काज करिस हनुमान ।।
पुतरा जरा रावण के,सब जीत परब मनावय जी ।
अपनेच भीतरी के रावण ला , काबर नि जरावय जी।।
जीत होइस श्रीराम के,होइस रावण के अंत ।
मिट गईस बुराइ जमों,खुशी मनाइस संत भगवंत।।
पाप मिटिस स़ंताप मिटिस,अउ गईस हे अहंकार ।
जीत होइस सत् के,मिट गइस सबो अतियाचार ।।
हिय में श्रीराम बसाई ले,मिटय दुःख अऊ संताप ।
हिरदे ले रावण भाव मिटाइके,करौ कभु झिन पाप ।।
का रावण जस बेवहार,अब हमला नई दिखथे।
रावण के अच्छाई ले, का कोनो कछु अब सीखथे।।
पुतरा जराये ले का कखरो,मन मा बदलाव आथे।
कलयुगी रावण ले अब, कोन हर बचा पाथे ।।
जोहार संग समीक्षा खातिर पठोवत हंव 🙏🏻
।। मोहित कुमार शर्मा अमलेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़।।
©बेजुबान शायर shivkumar
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here