संख्या
संख्या मैं से परे किसी की सत्ता नहीं मानता |भक्त ''मैं'' को नहीं मानता वह ''तू'' को ही मानता है |''मैं'' हूँ ही नहीं,''तू ''ही है |वह मैं को तू मैं विलीन करता है अन्त में ''तू'' ही बचता है एक ही बचता है |''मैं'' और ''तू '' का भेद ही द्वैत है |जब दोनों मैं एक ही बचता है तो वही #अद्वैत है |ज्ञानी उसी को "तत्" ..........
《DEVENDRA BHARADWAJ
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