चलो आज अपना हुनर आज़माते हैं, "तेरे मेरे सपने अभी भी एक रंग है"
एक अजब इत्तेफाक हुआ,सेन्ट्रल जेल के भीतर बाबा धांसूराम और हरफन मौला बाबा श्याम सहीम की मुलाकात हो गयी।जेल के भीतर भी कभी कभी सौहार्द रूपी जश्न मनायाजाता है,किसी का जन्
एक अजब इत्तेफाक हुआ,सेन्ट्रल जेल के भीतर बाबा धांसूराम और हरफन मौला बाबा श्याम सहीम की मुलाकात हो गयी।जेल के भीतर भी कभी कभी सौहार्द रूपी जश्न मनायाजाता है,किसी का जन्मदिन या शादी का दिन,सो कोई वैसा ही मौका था,जब दो बडे गुरुघंटाल इकठ्ठे हुये,और एकांत की एक जगह ताड कर पालथी मार के अगल बगल बैठ गये।कभी आमना सामना तो हुआ नहीं था,पर शक्ल से एक दूसरे को भली प्रकार से पहचानते थे,बाते शुरु हुई।
और कैसे है?...धांसूराम ने पूछा
बस चलता है,चचा,कट रही है,और क्या कहुं....श्याम सहीम ने आह भरी
अरे अपना भी वही है,बेटा,अब ये बूढा शरीर थक गया है
यहां कुछ मिलता विलता है या नहीं
मतलब?
अरे वही,मस्त खाना,या मस्त छोक.....श्याम एक आंख दबा के हंसा।
पागल हुआ है क्या,वो दिन हवा हुये,....धांसूराम ने ठन्डी सांस खींची
मै तो सब कुछ भूल ही गया,क्या समय चल रहा था वो भी,क्या नहीं था अपने पास?..श्याम सहीम ने भी लम्बी सांस ली
तूने तो काफी माल बनाया रे,अभी भी करोडो मे पडा होगा
वो तो सब है,पर यहां से जान छूटे,तब ना
वो तो अब शायद ही छूटे,कुछ होप है क्या?...धांसूराम ने आशा से पूछा
ये वकील,साले सारे लूट रहे है,करोड से उपर तो बहा दिया,कहते है,हो जायेगा,सब्र रखो,जवानी तो निकल रही है,चचा
वही अपना हाल है,कहीं इधर ही मौत ना आ जाये,मेरी तो उमर भी गयी......धांसूराम की आवाज़ भर्रा गयी
रुपया पैसा तो आपने भी खूब बनाया था,रखा तो है ना
अरे तो क्या करुं,मै भी इधर,मेरी औलाद भी इधर,पैसा काम आये तो कैसे आये?
ये तो सही है,चचा,ये अपना प्रधानमंत्री,इतना कडक पहले कभी नहीं देखा
एक बात बता,मान ले,कभी किसी चमत्कार से तू यहां से निकल गया,तो क्या करेगा,सब अय्याशी छोड देगा?
क्यों सपने दिखाते हो चचा,वैसे कभी छूटी है क्या,किसी की मुंह से लगी हुई?आप छोडोगे क्या?
हूं.......ये तो है,धांसूराम के भी आंखो मे पुरानी खुशगवार यादें चमक आयीं
तुम्हें शायद तुम्हारी बीमारी या बुढापे की वजह से छोड दिया जाये,सरकार की पालिसी तो है
अरे,क्या बात करता है बेटा,ले ये लड्डु खा,इसी बात पर....धांसूराम ने मिथ्या नंद के जन्मदिन पर मिला लड्डू उस की तरफ बढा दिया।
चचा, ये मिथ्यानंद तो बडा मौज कर रहा है,सुना है कि छूटने वाला भी है?
चलो,कोई तो अपने बिरादरी का निकले,तो अपना भी रास्ता खुले।
मै तो सड गया यहां,
चचा,वो जहरप्रीत भी अब भूलेभटके मिलने नहीं आती...श्याम ने आह भरी
आंयेगे रे,मेरा दिल कहता है,अपने दिन फिर से लौटेंगे,हर कुत्ते के भी दिन फिरते है,हमारे पास तो अब भी करोडो है...धांसूराम ने दंभ से कहा
मजा आ जाये चचा,गर हम साथ साथ या आगे पीछे छूंटे
तो क्या होगा?
होगा क्या, आपका अनुभव,और हमारे चेले,मेरी ताकत,सब मिला के एक नयी नगरी बनायेंगे,वही ऐश,वही मौज,क्यों?
हां,काश ऐसा हो जाये,सुधरने वाले तो हम है नहीं, इस बार जरा ज्यादा होशियारी से काम करेंगे
पर एक बात है चचा,ये जनता,अब ये चालू हो गयी है,अपनी बिरादरी के इतने लोग पकडाये है कि,क्या पता,क्या हो?.....श्याम सहीम ने शंका जतायी
मेरा बडा पुराना अनुभव है बेटा,तू फिकर मत कर,ये जनता हमेशा अंधी रही है,और रहेगी,इस देश मे अंधकार के देवता,अंधविश्वास का राज हमेशा ही रहेगा,और हम मौज करते रहेंगे।
बस तू कुछ जुगाड़ निकाल कि यहाँ से निकले....धांसूराम ने पूरे जोश से कहा
करता हूं चचा, कुछ करता हूं.......दो गुरुघंटालो ने अपने हाथ मिलाये फिर अलग हो गये।
और"तेरे मेरे सपने अभी भी एक रंग है"
एक अजब इत्तेफाक हुआ,सेन्ट्रल जेल के भीतर बाबा धांसूराम और हरफन मौला बाबा श्याम सहीम की मुलाकात हो गयी।जेल के भीतर भी कभी कभी सौहार्द रूपी जश्न मनायाजाता है,किसी का जन्
एक अजब इत्तेफाक हुआ,सेन्ट्रल जेल के भीतर बाबा धांसूराम और हरफन मौला बाबा श्याम सहीम की मुलाकात हो गयी।जेल के भीतर भी कभी कभी सौहार्द रूपी जश्न मनायाजाता है,किसी का जन्मदिन या शादी का दिन,सो कोई वैसा ही मौका था,जब दो बडे गुरुघंटाल इकठ्ठे हुये,और एकांत की एक जगह ताड कर पालथी मार के अगल बगल बैठ गये।कभी आमना सामना तो हुआ नहीं था,पर शक्ल से एक दूसरे को भली प्रकार से पहचानते थे,बाते शुरु हुई।
और कैसे है?...धांसूराम ने पूछा
बस चलता है,चचा,कट रही है,और क्या कहुं....श्याम सहीम ने आह भरी
अरे अपना भी वही है,बेटा,अब ये बूढा शरीर थक गया है
यहां कुछ मिलता विलता है या नहीं
मतलब?
अरे वही,मस्त खाना,या मस्त छोक.....श्याम एक आंख दबा के हंसा।
पागल हुआ है क्या,वो दिन हवा हुये,....धांसूराम ने ठन्डी सांस खींची
मै तो सब कुछ भूल ही गया,क्या समय चल रहा था वो भी,क्या नहीं था अपने पास?..श्याम सहीम ने भी लम्बी सांस ली
तूने तो काफी माल बनाया रे,अभी भी करोडो मे पडा होगा
वो तो सब है,पर यहां से जान छूटे,तब ना
वो तो अब शायद ही छूटे,कुछ होप है क्या?...धांसूराम ने आशा से पूछा
ये वकील,साले सारे लूट रहे है,करोड से उपर तो बहा दिया,कहते है,हो जायेगा,सब्र रखो,जवानी तो निकल रही है,चचा
वही अपना हाल है,कहीं इधर ही मौत ना आ जाये,मेरी तो उमर भी गयी......धांसूराम की आवाज़ भर्रा गयी
रुपया पैसा तो आपने भी खूब बनाया था,रखा तो है ना
अरे तो क्या करुं,मै भी इधर,मेरी औलाद भी इधर,पैसा काम आये तो कैसे आये?
ये तो सही है,चचा,ये अपना प्रधानमंत्री,इतना कडक पहले कभी नहीं देखा
एक बात बता,मान ले,कभी किसी चमत्कार से तू यहां से निकल गया,तो क्या करेगा,सब अय्याशी छोड देगा?
क्यों सपने दिखाते हो चचा,वैसे कभी छूटी है क्या,किसी की मुंह से लगी हुई?आप छोडोगे क्या?
हूं.......ये तो है,धांसूराम के भी आंखो मे पुरानी खुशगवार यादें चमक आयीं
तुम्हें शायद तुम्हारी बीमारी या बुढापे की वजह से छोड दिया जाये,सरकार की पालिसी तो है
अरे,क्या बात करता है बेटा,ले ये लड्डु खा,इसी बात पर....धांसूराम ने मिथ्या नंद के जन्मदिन पर मिला लड्डू उस की तरफ बढा दिया।
चचा, ये मिथ्यानंद तो बडा मौज कर रहा है,सुना है कि छूटने वाला भी है?
चलो,कोई तो अपने बिरादरी का निकले,तो अपना भी रास्ता खुले।
मै तो सड गया यहां,
चचा,वो जहरप्रीत भी अब भूलेभटके मिलने नहीं आती...श्याम ने आह भरी
आंयेगे रे,मेरा दिल कहता है,अपने दिन फिर से लौटेंगे,हर कुत्ते के भी दिन फिरते है,हमारे पास तो अब भी करोडो है...धांसूराम ने दंभ से कहा
मजा आ जाये चचा,गर हम साथ साथ या आगे पीछे छूंटे
तो क्या होगा?
होगा क्या, आपका अनुभव,और हमारे चेले,मेरी ताकत,सब मिला के एक नयी नगरी बनायेंगे,वही ऐश,वही मौज,क्यों?
हां,काश ऐसा हो जाये,सुधरने वाले तो हम है नहीं, इस बार जरा ज्यादा होशियारी से काम करेंगे
पर एक बात है चचा,ये जनता,अब ये चालू हो गयी है,अपनी बिरादरी के इतने लोग पकडाये है कि,क्या पता,क्या हो?.....श्याम सहीम ने शंका जतायी
मेरा बडा पुराना अनुभव है बेटा,तू फिकर मत कर,ये जनता हमेशा अंधी रही है,और रहेगी,इस देश मे अंधकार के देवता,अंधविश्वास का राज हमेशा ही रहेगा,और हम मौज करते रहेंगे।
बस तू कुछ जुगाड़ निकाल कि यहाँ से निकले....धांसूराम ने पूरे जोश से कहा
करता हूं चचा, कुछ करता हूं.......दो गुरुघंटालो ने अपने हाथ मिलाये फिर अलग हो गये।
और"तेरे मेरे सपने अभी भी एक रंग हैं
एक अजब इत्तेफाक हुआ,सेन्ट्रल जेल के भीतर बाबा धांसूराम और हरफन मौला बाबा श्याम सहीम की मुलाकात हो गयी।जेल के भीतर भी कभी कभी सौहार्द रूपी जश्न मनायाजाता है,किसी का जन्मदिन या शादी का दिन,सो कोई वैसा ही मौका था,जब दो बडे गुरुघंटाल इकठ्ठे हुये,और एकांत की एक जगह ताड कर पालथी मार के अगल बगल बैठ गये।कभी आमना सामना तो हुआ नहीं था,पर शक्ल से एक दूसरे को भली प्रकार से पहचानते थे,बाते शुरु हुई।
और कैसे है?...धांसूराम ने पूछा
बस चलता है,चचा,कट रही है,और क्या कहुं....श्याम सहीम ने आह भरी
अरे अपना भी वही है,बेटा,अब ये बूढा शरीर थक गया है
यहां कुछ मिलता विलता है या नहीं
मतलब?
अरे वही,मस्त खाना,या मस्त छोक.....श्याम एक आंख दबा के हंसा।
पागल हुआ है क्या,वो दिन हवा हुये,....धांसूराम ने ठन्डी सांस खींची
मै तो सब कुछ भूल ही गया,क्या समय चल रहा था वो भी,क्या नहीं था अपने पास?..श्याम सहीम ने भी लम्बी सांस ली
तूने तो काफी माल बनाया रे,अभी भी करोडो मे पडा होगा
वो तो सब है,पर यहां से जान छूटे,तब ना
वो तो अब शायद ही छूटे,कुछ होप है क्या?...धांसूराम ने आशा से पूछा
ये वकील,साले सारे लूट रहे है,करोड से उपर तो बहा दिया,कहते है,हो जायेगा,सब्र रखो,जवानी तो निकल रही है,चचा
वही अपना हाल है,कहीं इधर ही मौत ना आ जाये,मेरी तो उमर भी गयी......धांसूराम की आवाज़ भर्रा गयी
रुपया पैसा तो आपने भी खूब बनाया था,रखा तो है ना
अरे तो क्या करुं,मै भी इधर,मेरी औलाद भी इधर,पैसा काम आये तो कैसे आये?
ये तो सही है,चचा,ये अपना प्रधानमंत्री,इतना कडक पहले कभी नहीं देखा
एक बात बता,मान ले,कभी किसी चमत्कार से तू यहां से निकल गया,तो क्या करेगा,सब अय्याशी छोड देगा?
क्यों सपने दिखाते हो चचा,वैसे कभी छूटी है क्या,किसी की मुंह से लगी हुई?आप छोडोगे क्या?
हूं.......ये तो है,धांसूराम के भी आंखो मे पुरानी खुशगवार यादें चमक आयीं
तुम्हें शायद तुम्हारी बीमारी या बुढापे की वजह से छोड दिया जाये,सरकार की पालिसी तो है
अरे,क्या बात करता है बेटा,ले ये लड्डु खा,इसी बात पर....धांसूराम ने मिथ्या नंद के जन्मदिन पर मिला लड्डू उस की तरफ बढा दिया।
चचा, ये मिथ्यानंद तो बडा मौज कर रहा है,सुना है कि छूटने वाला भी है?
चलो,कोई तो अपने बिरादरी का निकले,तो अपना भी रास्ता खुले।
मै तो सड गया यहां,
चचा,वो जहरप्रीत भी अब भूलेभटके मिलने नहीं आती...श्याम ने आह भरी
आंयेगे रे,मेरा दिल कहता है,अपने दिन फिर से लौटेंगे,हर कुत्ते के भी दिन फिरते है,हमारे पास तो अब भी करोडो है...धांसूराम ने दंभ से कहा
मजा आ जाये चचा,गर हम साथ साथ या आगे पीछे छूंटे
तो क्या होगा?
होगा क्या, आपका अनुभव,और हमारे चेले,मेरी ताकत,सब मिला के एक नयी नगरी बनायेंगे,वही ऐश,वही मौज,क्यों?
हां,काश ऐसा हो जाये,सुधरने वाले तो हम है नहीं, इस बार जरा ज्यादा होशियारी से काम करेंगे
पर एक बात है चचा,ये जनता,अब ये चालू हो गयी है,अपनी बिरादरी के इतने लोग पकडाये है कि,क्या पता,क्या हो?.....श्याम सहीम ने शंका जतायी
मेरा बडा पुराना अनुभव है बेटा,तू फिकर मत कर,ये जनता हमेशा अंधी रही है,और रहेगी,इस देश मे अंधकार के देवता,अंधविश्वास का राज हमेशा ही रहेगा,और हम मौज करते रहेंगे।
बस तू कुछ जुगाड़ निकाल कि यहाँ से निकले....धांसूराम ने पूरे जोश से कहा
करता हूं चचा, कुछ करता हूं.......दो गुरुघंटालो ने अपने हाथ मिलाये फिर अलग हो गये।
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