कम ही होंगे संग के, स्नेहपूरित प्रसंग
फिर भी प्यार तेरे साथ, अमर है मेरा
जी नहीं पाए कुछ लम्हों को, बेहतर भले
बेमिसाल जीने का, लेकर बैठा हूं समंदर गहरा
कुछ ही हवा के झोंके, संदेश देते होंगे मेरे
पर आंखों में बसा, पलकें कर रही है पहरा
हिचकियों की शिकायत, कभी ही होती होगी
याद न आए, ऐसा पल अब तक न गुजरा
संग चलने का वाकया, क्या पता कब हुआ
पार करने का तेरे संग, दूरान्त अथक मार्ग मेरा
कसमें-वादे गिले-शिकवे, रहे या ना रहे
धड़कने बयां करती हैं, बसा आशियां तेरा
हिसाब नहीं कर पाया, कितनी रही परवाह
समर्पित करता अब, मेरी देह का कतरा कतरा
कब बसोगी कब रमोगी, कब समा जाओगी
इसी की बाट जोहने को, मैं कब से ठहरा
अमर-चिरंजीवी, इस प्रेम का इतिहास रहे
तू-मैं अब हम-सम होंवें, भेद मिटे तेरा-मेरा
©Trilok
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