एक एहसास उसके होने का,
फिर एक ख़्वाब उसके छूने का,
उससे मोहब्बत एक तरफा सही,
उसपे इल्जाम, मेरा दिल खोने का,
उसको देखना भी जैसे एक बहार हो,
जन्नत से होकर आई जैसे वो सवार हो,
जैसे पकड़ती हैं चाय की प्याली वो,
हाय, कितनी लगती हैं मुझको प्यारी वो,
की हर बात उसकी, और मेरी भी रजा होगी,
अगर वो रूठ जाए मेरे लिए सजा होगी,
की एक शाम उसे मिलने को बुलाना हैं,
मैं जो नज्में उसपर लिखता हूं, वो सब कुछ उसे सुनाना हैं,
फिर नजरों ही नज़रों में हमारी कुछ बात होगी,
नजाने कब, तुमसे पहली वो मुलाकात होगी ?
©Vivek Boniyal
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