मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं 

माना कि मै मज़दूर हूँ , प
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मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं माना कि मै मज़दूर हूँ , पर मजबूर नहीं, भूखा जरूर हूँ पर भिखारी नहीं । हालातों के सामने बेबस जरूर हो गया हूँ पर कायर नहीं, जिंदगी फटेहाली में गुजर रही पर भिखारी नहीं। हाँ मैं मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं। माना इस पूँजीवादी दुनिया में , मेरा कोई अस्तित्व नहीं । इन महलों में रहने वाले बाबू से पूछो, हमी से इनका वजूद है । इस देश के वासी है , कहलाते प्रवासी है। भले ही मिली हो दर - दर की ठोकरे । पर हौसला आज भी उतने ही बुलंद है, क्योंकि हम मज़दूर हैं, मजबूर नहीं। हाय रे विधि का विधाता , तूने ये कैसा लेख लिखा। जिन लोगो ने दूसरों के बसेरा को सजाया, उन्हीं का कोई ठिकाना नहीं, कुछ समय गुजरने दो बाबू , इन कल कारखाने को चलाने के लिए फिर यही प्रवासी याद आयेंगे । जिन हाथों ने नव - निर्माण किया , उन हाथों की अब कदर नहीं। पैसों के दम पर जो देश छोड़ गये, उनकी कीमत जान पड़ी । इन पैसेवालो की दुनियाँ में , अपनी तो कोई मोल नहीं। माना की मज़दूर हूँ, पर मजबूर नहीं।। अनामिका कुमारी

#WorldEnvironmentDay  मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं 

माना कि मै मज़दूर हूँ , पर मजबूर नहीं, 
     भूखा जरूर हूँ पर भिखारी नहीं ।
हालातों के सामने बेबस जरूर हो गया हूँ पर कायर नहीं, 
  जिंदगी फटेहाली में गुजर रही पर भिखारी नहीं। 
       हाँ मैं मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं। 
        माना इस पूँजीवादी दुनिया में , 
          मेरा कोई अस्तित्व नहीं । 
इन महलों में रहने वाले बाबू से पूछो, 
        हमी से इनका वजूद है । 
इस देश के वासी है , कहलाते प्रवासी है। 
 भले ही मिली हो दर - दर  की ठोकरे ।
  पर हौसला आज भी उतने ही बुलंद है, 
क्योंकि हम मज़दूर हैं, मजबूर नहीं। 
हाय रे विधि का विधाता , तूने ये कैसा लेख लिखा। 
जिन लोगो ने दूसरों के बसेरा को सजाया, 
        उन्हीं का कोई ठिकाना नहीं, 
        कुछ समय गुजरने दो बाबू , 
  इन कल कारखाने को चलाने के लिए
       फिर यही प्रवासी याद आयेंगे । 
जिन हाथों ने नव - निर्माण किया , 
       उन हाथों की अब कदर नहीं। 
पैसों के दम पर जो देश छोड़ गये, 
      उनकी कीमत जान पड़ी । 
इन पैसेवालो की दुनियाँ में , 
      अपनी तो कोई मोल नहीं। 
माना की मज़दूर हूँ, 
               पर मजबूर नहीं।।

                 अनामिका कुमारी
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