दीप  जला  हो  जिस  घर  में। 
बस रौशन करता उस घर को
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दीप जला हो जिस घर में। बस रौशन करता उस घर को। तू बिटिया है कुल का गौरव। रौशन करती दो कुल को। तुझे देख कर चलती सांसें। तू ही हृदय की धड़कन है। तेरे बिना जीऊं मैं कैसे। तू ही तो मेरा जीवन है। उलझन सब मेरे जीवन की। मुस्कान तेरी सुलझाती है। जब भी तेरी बातें सुनता। मुझे दादी याद आ जाती है। हाथ में है लालटेन मगर। जीवन को रौशन तूने किया। बैठ के मेरी गोदी में। तूने जीवन ये धन्य किया। अजय कुमार द्विवेदी ''अजय'' ©Ajay Kumar Dwivedi

#अजयकुमारव्दिवेदी #कविता  दीप  जला  हो  जिस  घर  में। 
बस रौशन करता उस घर को।
तू  बिटिया  है कुल  का गौरव।
रौशन   करती   दो  कुल  को। 
तुझे देख कर चलती सांसें। 
तू  ही हृदय की धड़कन है। 
तेरे  बिना  जीऊं  मैं  कैसे। 
तू  ही  तो  मेरा  जीवन  है। 
उलझन सब मेरे जीवन की। 
मुस्कान  तेरी  सुलझाती है। 
जब  भी  तेरी बातें  सुनता। 
मुझे दादी याद आ जाती है। 
हाथ  में   है  लालटेन  मगर।
जीवन को रौशन तूने किया। 
बैठ    के   मेरी   गोदी    में। 
तूने  जीवन  ये  धन्य किया। 

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''

©Ajay Kumar Dwivedi
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