लोग रखते गुमान क्या, मत कह वो न समझेंगे माजरा, मत कह जानता है न हश्र क्या होगा पर इसे पैंतरा नया, मत कह किसके हक़ में है फ़ैसला उसका कोई खुल कर न बोलता, मत.
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