कल्पना.... सुनो, जब मेघ नही आयेंगे अपने गांव तो हम ले चलेंगे अपनी बैलगाड़ी किसी दूसरे गांव , लगा लेंगे वहां हम अपनी कल्पनाओं की सीढ़ी.
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