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मैं ना समझी थी, कि कलम को भी, कल का लम्हा लिखना पड़ेगा, खर्चा चलाने जीवन का, किताबों को बाजार में बिकना पड़ेगा.
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मैं ना समझी थी, कि कलम को भी, कल का लम्हा लिखना पड़ेगा, खर्चा चलाने जीवन का, किताबों को बाजार में बिकना पड़ेगा, गुल्लक को भरने के लिए, शब्द-शब्द भी रचना पड़ेगा, करने किसी की उम्मीदों को पूरा, शब्दों को भी अलग दिखना पड़ेगा, पद-प्रतिष्ठा पाने के खातिर, शब्दों को भी संवरना पड़ेगा, रोचक बनाने को जीवन अपना, लिख कर भी जीवन खर्चना पड़ेगा। ©Aarti Choudhary
Aarti Choudhary
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