मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए जोश-ए-क़दह से, बज़्म चराग़ां किये हुए माँगे है फिर, किसी को लब-ए-बाम पर, हवस ज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ प परीशाँ किये हुए.
1 Stories
Will restore all stories present before deactivation.
It may take sometime to restore your stories.
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here