मैंने चाहा तो बहुत कि सवार दूं ,
जो बिखरीं थी हवा
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मैंने चाहा तो बहुत कि सवार दूं , जो बिखरीं थी हवा से जुल्फें तेरी। कहीं पड़ न जाए यूं खलल नींद में, तो रोक ली हाथों ने फिर चाहत मेरी। ©susheel sk

 मैंने चाहा तो बहुत कि सवार दूं ,
जो बिखरीं थी हवा से जुल्फें तेरी।
कहीं पड़ न जाए यूं खलल नींद में,
तो रोक ली हाथों ने फिर चाहत मेरी।

©susheel sk

मैंने चाहा तो बहुत कि सवार दूं , जो बिखरीं थी हवा से जुल्फें तेरी। कहीं पड़ न जाए यूं खलल नींद में, तो रोक ली हाथों ने फिर चाहत मेरी। ©susheel sk

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