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।।अंतिम यात्रा।। नवजात शिशु से हुआ प्रौढ़ वह,जिसने रची स्वयं की यात्रा। मृत्यु शैय्या करती प्रतीक्षा,तय करने को अंतिम यात्रा।। छोड़ गया वह घर–बार चौबारे, बेसुध है पत्नी और घर बारे।। बेटी का विलाप देखा न जाए , मौन बैठा बेटा सिर मुंडवाए। जिनके हाथों ने लिखनी थी , बच्चों की जीवन परिपात्रता । आज उसी दाता को मिलती , कंधों की पद –चल यात्रा।। परिजन करते शोक–विलाप,करें पड़ोसी वार्ता। राम नाम के साथ चलती, जीवन की अंतिम यात्रा।। ©susheel sk

#अंतिम_यात्रा #यथार्थ #समाज  ।।अंतिम यात्रा।।
नवजात शिशु से हुआ प्रौढ़ वह,जिसने रची स्वयं की यात्रा।
मृत्यु शैय्या करती प्रतीक्षा,तय करने को अंतिम यात्रा।।
छोड़ गया वह घर–बार चौबारे,
बेसुध है पत्नी और घर बारे।।
बेटी का विलाप देखा न जाए ,
मौन बैठा बेटा सिर मुंडवाए।
जिनके हाथों ने लिखनी थी ,
बच्चों की जीवन परिपात्रता ।
आज उसी दाता को मिलती ,
कंधों की पद –चल यात्रा।।
परिजन करते शोक–विलाप,करें पड़ोसी वार्ता।
राम नाम के साथ चलती, जीवन की अंतिम यात्रा।।

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कुछ आहत या क्षुब्ध हैं, कुछ के मन में रोष । बिना किसी अपराध के , साधु मरे निर्दोष ।। वामी बिल में घुस गए , लिबरल साधे मौन । रक्षक मूक दर्शक बने , कातिल पकड़े कौन ।। ©susheel sk

#ravishkumar #godimedia #G20  कुछ आहत या क्षुब्ध हैं, 
कुछ के मन में रोष । 
बिना किसी अपराध के ,
 साधु मरे निर्दोष ।।
 वामी बिल में घुस गए , 
लिबरल साधे मौन । 
रक्षक मूक दर्शक बने , 
कातिल पकड़े कौन ।।

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न बन सका अब उस जैसा, जो रहता था कभी खुद जैसा। चेहरे पे मुखौटे हंसते हैं मगर, कौन हंसता है पहले जैसा।। ©susheel sk

#fake_smile  न बन सका अब उस जैसा,
जो रहता था कभी खुद जैसा।
चेहरे पे मुखौटे हंसते हैं मगर,
कौन हंसता है पहले जैसा।।

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#fake_smile #fake_smile heart

16 Love

मैंने चाहा तो बहुत कि सवार दूं , जो बिखरीं थी हवा से जुल्फें तेरी। कहीं पड़ न जाए यूं खलल नींद में, तो रोक ली हाथों ने फिर चाहत मेरी। ©susheel sk

 मैंने चाहा तो बहुत कि सवार दूं ,
जो बिखरीं थी हवा से जुल्फें तेरी।
कहीं पड़ न जाए यूं खलल नींद में,
तो रोक ली हाथों ने फिर चाहत मेरी।

©susheel sk

मैंने चाहा तो बहुत कि सवार दूं , जो बिखरीं थी हवा से जुल्फें तेरी। कहीं पड़ न जाए यूं खलल नींद में, तो रोक ली हाथों ने फिर चाहत मेरी। ©susheel sk

11 Love

ग़ज़ल तेरी नजरंदाजगी के तोहफे में,मुझे कई अश्क मिले, तोहफे में तुमसे मिले तो हम हंसकर उनसे गले मिले।। अश्क थे वो कुछ बेहद नाजुक और वे–ठहर, मेरी आंखो ने पुकारा, रुक तो जरा एक–पहर। तू इनाम है मेरी वफ़ा का कैसे तुझे बह जाने दूं... तुझे रोक लूं पलकों में और मोम बना ही लूं।। थे जो मोम बने उन्हे भी तेरी यादों ने पिघला ही दिया, जिन्हे कर चुका था दफन उन यादों को सुलगा ही दिया। तेरी नजरंदाजगी के तोहफे में.......... जो आग लगी सीने में कुछ न कह पाया कोई भी , बुझाने को मन की आग पानी न लाया कोई भी, फिर उन्हीं अश्कों से भीगे तकिए ने मुझे संभाला, धधकती आग में अश्कों की फुहार ने घेरा डाला। भीगा तकिया बोल उठा नजरंदाजगी कुछ लम्हाती है तू भी जाने मैं भी जानू वो भी कुछ जज्बाती है।। तेरी नजरंदाजगी के तोहफे में...... @susheel_sk_69 ©susheel sk

#shayariTanya #ghazal  ग़ज़ल
तेरी  नजरंदाजगी के तोहफे में,मुझे कई अश्क मिले,
तोहफे में तुमसे मिले तो हम हंसकर उनसे गले मिले।।
अश्क थे वो कुछ बेहद नाजुक और वे–ठहर,
मेरी आंखो ने पुकारा, रुक तो जरा एक–पहर।
तू इनाम है मेरी वफ़ा का कैसे तुझे बह जाने दूं...
तुझे रोक लूं पलकों में और मोम बना ही लूं।।
थे जो मोम  बने उन्हे भी तेरी यादों ने पिघला ही दिया,
जिन्हे कर चुका था दफन उन यादों को सुलगा ही दिया।
तेरी  नजरंदाजगी के तोहफे में..........
जो आग लगी सीने में कुछ न कह पाया कोई भी ,
बुझाने को मन की आग पानी न लाया  कोई भी,
फिर उन्हीं अश्कों से भीगे तकिए ने मुझे संभाला,
धधकती आग में अश्कों की  फुहार ने घेरा डाला।
भीगा तकिया बोल उठा नजरंदाजगी कुछ लम्हाती है 
तू भी जाने मैं भी जानू वो भी कुछ  जज्बाती है।।
तेरी  नजरंदाजगी के तोहफे में......
@susheel_sk_69

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#ghazal #shayariTanya Dubey

15 Love

कलम बनाम व्यापार (बुंदेली व्यंग) अपने करम न देख सके, बड़ी मूछन के एक सेठ। जो तुमपे सवाल उठाए सो,ऊखो खरीद लियो सेठ।। चाकरी करत सरकारें हैं, धोत–धोती चौथो खम्भ। लोकतंत्र की आत्मा अब , काए बन बैठी स्तंभ।। न्यायपीठ गांधारी बन गई, लिबरल साधे मौन। अच्छे दिनो की आस में, अच्छो ढूंढे कौन।। दाढ़ी बढ़ाए का होए , जब घट जाए सम्मान। दाने दाने को तरस रहो ,देश में अन्नदाता महान।। जात पात में बिदा रहे, युवा होत दिशा हीन। सफेद टोपी के नीचे, एक फिलम चले रंगीन।। कछु सजग है ई कुराचार से, होत हर रोज हैरान। आए दिना फिर बिक रही, बची पुरानी धान।। जो सच खा सच बोल दए, ऊ होत बदनाम। जो कहबे हां जू –हां जू, बेई सच्चे गुलाम।। बेड़ी बंधी कलम पे, चर रई हरो नोट। पूंजीपति के आंगन में, सरकार मांगे बोट ।। अलख अबे भी जल रही ,कछु लोगन के भीत। फिर आइना दिखा रहे, जिनके "रवि है ईश"।। ©susheel sk

#रवीश_कुमार #न्यूज़ #government  कलम बनाम व्यापार
(बुंदेली व्यंग)
अपने करम न देख सके, बड़ी मूछन के एक सेठ।
जो तुमपे सवाल उठाए सो,ऊखो खरीद लियो सेठ।।
चाकरी करत सरकारें हैं, धोत–धोती चौथो खम्भ।
लोकतंत्र की आत्मा अब , काए बन बैठी स्तंभ।।
न्यायपीठ गांधारी बन गई, लिबरल साधे मौन।
अच्छे दिनो की आस में, अच्छो ढूंढे कौन।।
दाढ़ी बढ़ाए का होए , जब घट जाए सम्मान।
दाने दाने को तरस रहो ,देश में अन्नदाता महान।।
जात पात में बिदा रहे, युवा होत दिशा हीन।
सफेद टोपी के नीचे, एक फिलम चले रंगीन।।
कछु सजग है ई कुराचार से, होत हर रोज हैरान।
आए दिना फिर बिक रही, बची पुरानी धान।।
जो सच खा सच बोल दए, ऊ होत बदनाम।
जो कहबे हां जू –हां जू, बेई सच्चे गुलाम।।
बेड़ी बंधी कलम पे, चर रई हरो नोट।
पूंजीपति के आंगन में, सरकार मांगे बोट ।।
अलख अबे भी जल रही ,कछु लोगन के भीत।
फिर आइना दिखा रहे, जिनके "रवि है ईश"।।

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