जब भी महफ़िल ए बेवफा सजाई जाती हैं, मुझ जैसी नाकाम शख्शियत ज़रूर बुलाई जाती हैं। फिर मैं करता हूँ अपने दर्द की नुमाइश खुल ए आम, फिर सर ए आम मेरी तकलीफ पर ताली बज.
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