Village Life टूटी सी बस्ती थी एक...
उसमें एक अलग नज़ारा था,
एक मां थी और जमुना था एक..
और जंगल में जग सारा था।
जब मानसरोवर हिलते थे,
लहरें आपस में मिलते थे।
वो चमक.. चंचलन चंद्रमणि
नग से धरा को उतरते थे,
लोटती थी गंगा मिट्टी में..
उजियारा ही उजियारा था।
टूटी सी....। एक मां....।
दोपहर ज़रा सा होता था,
टेंगुरी(कुल्हारी, छोटी कुल्हारी) लेकर के आता था।
फिर ठोक तने में हला कहीं..
सरपट ऊपर चढ़ जाता था।
फिर वट से वो लकड़े उतार..
है छकर डालियां मार मार..,
घर जाता वो बेचारा था।
ईश्वर मेरा वो वन जीवन,
मोहे सौ जन्मों से प्यारा था।
टूटी सी....। एक मां....।
___अभिनव आनंद बिहारीबाबू
©Adv. Abhinav Anand Biharibabu
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here