अब और किसी के कांधों पर चढ़कर अंबर की ऊंचाई ना चाहूंगा । मैं मिट्टी का था मिट्टी का हूॅं मैं मिट्टी का ही बनकर रहना चाहूंगा।। अम्बिका मिश्र'.
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